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कुंडली मिलान या चरित्र मिलान? बदलते समय में विवाह के नए सूत्र

Professional Astrologer in DelhiPodcast-based article exploring kundali milan vs. character matching—Shankerji’s sharp take on modern marriage astrology.


परिचय: 
शादी के मामलों में अक्सर पहला सवाल यही होता है — “कुंडली मिली या नहीं?” लेकिन इस सवाल के जवाब में क्या छुपा है कोई गारंटी? क्या सिर्फ़ गुणों का मेल ही यह तय करता है कि शादी सफल होगी? शंकर जी ने अपने पॉडकास्ट में इसी गहरे विषय पर चर्चा की — और यह बताया कि समय बदल गया है, लेकिन सोच अभी भी पुराने पन्नों में उलझी हुई है

सिर्फ़ गुण मिलना अब काफी नहीं है

शंकर जी कहते हैं कि उन्होंने अनगिनत ऐसे उदाहरण देखे हैं जहाँ कुंडली मिलान किया गया, गुण भी अच्छे थे, लेकिन फिर भी रिश्ते टूटे। और वहीं कुछ शादियाँ ऐसी भी थीं जहाँ कुंडली का कोई मेल नहीं था, फिर भी रिश्ता बरसों तक मजबूती से टिका रहा। यह अनुभव बताता है कि सिर्फ़ 36 गुण मिल जाना, या मंगल दोष का होना-न होना, अब शादी के सफल होने की गारंटी नहीं है।

ग्रहों से ज़्यादा ज़रूरी है स्वभाव और संस्कार का मिलान

आज की तारीख़ में एक व्यक्ति का नेचर, प्रोफेशन, सोचने का तरीका, सहनशीलता, और पारिवारिक पृष्ठभूमि ज्यादा महत्व रखती है। उदाहरण के लिए, शंकर जी कहते हैं —

“अगर किसी पुरुष का मंगल बहुत उग्र है, और उसमें स्ट्रॉन्ग अग्रेसिव टेंडेंसी है, तो वो केवल कुंडली के आधार पर नहीं समझा जा सकता। देखना पड़ेगा कि उसकी परवरिश कैसी हुई है, वह कितना संतुलित है, उसका कैरियर कैसा है।”

उसी तरह, लड़की के भी केवल ग्रह नहीं — उसका व्यवहार, संवाद शैली, और सोच भी ज़रूरी है। यानी आज का कुंडली मिलान सिर्फ़ पंचांग नहीं, परख का दस्तावेज़ होना चाहिए।

आज के समय में नाड़ी दोष, गोत्र मिलान जैसी बातें बदल रही हैं

शंकर जी ने एक और महत्वपूर्ण बिंदु रखा —

“पहले समय में जब लोग अपने ही गांव, जाति या कबीले में विवाह करते थे, तब गोत्र मिलान और नाड़ी दोष का महत्व था। लेकिन आज की शहरी और वैश्विक सोच में, यह सिस्टम प्रैक्टिकली लागू नहीं होता।”

आज कई लोग जाति या गोत्र की जानकारी भी नहीं रखते। ऐसे में पुरानी विधियां सिर्फ़ परंपरा बनकर रह गई हैं, जबकि नवीन सोच कहती है — ग्रह तो देखें ही, साथ ही व्यक्ति की सोच, शिक्षा और संस्कार भी जोड़ें।

गुरु उच्च का है — फिर भी शादी क्यों बिगड़ती है?

बहुत से लोग सोचते हैं कि “गुरु उच्च का है” तो ज़िंदगी में सब अच्छा होगा। लेकिन शंकर जी ने स्पष्ट किया —

“अगर गुरु उच्च का है लेकिन वह ग्रह अन्य अशुभ ग्रहों के साथ बैठा है, या व्यक्ति के कर्म उस ग्रह की ऊर्जा से मेल नहीं खा रहे, तो ज़िंदगी में संकट आते हैं।”

यानी कोई भी ग्रह अकेले अच्छा या बुरा नहीं होता। उसका असर व्यक्ति के कर्म, समझ और संगति पर निर्भर करता है।

ग्रहों से आगे की परख — समय की ज़रूरत

अब शादियाँ सिर्फ़ दो लोगों के मेल का विषय नहीं रहीं, बल्कि यह दो परिवारों, दो संस्कृतियों, दो विज़न का संगम बन चुकी हैं। ऐसे में:

  • व्यवहारिकता, करियर की स्थिरता, विचारों की परिपक्वता, और लाइफ गोल्स की समानता

इन सबका मिलान भी अब उतना ही आवश्यक है, जितना ग्रहों का।

निष्कर्ष: रिश्ता निभाना है, ग्रह से नहीं — समझ से

शंकर जी ने आज की पीढ़ी के लिए एक स्पष्ट संदेश दिया — कुंडली मिलाओ, लेकिन इंसान को भी समझो।
ग्रह जुड़ सकते हैं, लेकिन रिश्ता तभी टिकेगा जब दोनों व्यक्ति एक-दूसरे की भाषा, मन और सोच को समझें। यही आज के दौर की सबसे बड़ी ज्योतिषीय सीख है।

Dr. A. Shanker
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